रामायण के अनुसार, त्रेता युग में श्रीराम का जन्म हिन्दू कैलेंडर के चैत्र माह में नवमी तिथि को हुआ था। इस दिन पुनर्वसु नक्षत्र था और अन्य ग्रहों की स्थिति भी बहुत शुभ थी। इस बार इस बार पंचांग भेद होने की वजह से रामनवमी पर्व 13 और 14 अप्रैल को मनाया जाएगा। राजा दशरथ बूढ़े हो गए थे तब तक उनकी कोई संतान नहीं थी। इसके बाद राजा दशरथ ने पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाया था। इस यज्ञ के प्रभाव से ही राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुध्न का जन्म हुआ।

- ऋषि ऋष्यश्रृंग ने करवाया था पुत्रकामेष्ठि यज्ञ
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, राजा दशरथ जब काफी बूढ़े हो गए तो संतान न होने के कारण वे काफी चिंतित रहने लगे। तब उन्हें ब्राह्मणों ने पुत्रकामेष्ठि यज्ञ करवाने के लिए कहा। महर्षि वशिष्ठ के कहने पर राजा दशरथ ने ऋषि ऋष्यश्रृंग को इस यज्ञ के लिए आमंत्रित किया। ऋषि ऋष्यश्रृंग के माध्यम से ही ये यज्ञ संपन्न हुआ। इस यज्ञ के फलस्वरूप ही भगवान श्रीराम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न का जन्म हुआ था।
- यज्ञ से मिला देवताओं द्वारा बनाई खीर का प्रसाद
पुत्रकामेष्टि यज्ञ पूर्ण होने पर यज्ञ में अग्निदेव प्रकट हुए। उनके हाथ में सोने का एक कुंभ यानी घड़ा था। जिसका ढक्कन चांदी का था। उस घड़े में पायस यानी खीर थी। अग्निदेव ने वो घड़ा राजा दशरथ को देते हुए कहा कि ये खीर देवताओं द्वारा बनाई गई है। इस पायस को आप अपनी रानियों को खिलाएं। जिससे सर्वगुण संपन्न और हर तरह के ज्ञान से पूर्ण संतान आपको प्राप्त होगी। अग्निदेव के कहने पर राजा दशरथ ने वो खीर से भरा घड़ा ले लिया और अपनी रानियों को यज्ञ स्थल पर बुलाया। इसके बाद घड़े की आधी खीर कौशल्या को दी। कौशल्या को दी हुई खीर में से आधा भाग कौशल्या के द्वारा ही सुमित्रा को दिलवाया। इसके बाद घड़े में बची हई खीर कैकई को दी गई और कैकई को दी हुई खीर का आधा हिस्सा कैकई के हाथों से ही सुमित्रा को दिलवाई। इस तरह तीनों रानियों ने अपना प्रसाद अलग-अलग ग्रहण किया।
- पुत्रकामेष्टि यज्ञ के एक साल बाद हुआ राम जन्म
पुत्रकामेष्टि यज्ञ के एक साल बाद चैत्र माह के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि पर पुनर्वसु नक्षत्र में रानी कौशल्या ने एक तेजस्वी बच्चे को जन्म दिया। वहीं सुमित्रा के गर्भ से जुड़वा बच्चे हुए और कैकई ने एक पुत्र को जन्म दिया। इन बच्चों के जन्म के बारह दिनों बाद कुल पुरोहित वशिष्ठ जी ने कौशल्या के बेटे का नाम राम रखा। कैकई के बेटे का नाम भरत और सुमित्रा के दोनों बच्चों का नाम लक्ष्मण और शत्रुध्न रखा। इसके बाद समय-समय पर सभी पुत्रों के संस्कार पूरे किए गए।
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